
रंग लेखन और रंगचर्चा की दष्टि से देखें तो हिन्दी नाटकों में विभिन्न प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं ये प्रयोग सामयिक और सनातन प्रश्नों से मुठभेड करते हुए अपनी सार्थकता सिध्द करते हैं अब यह चिन्ता कुछ कम हो रही है कि हिन्दी में मौलिक नाट्रयलेखों का अभाव है वस्तुत पिछले दो दशकों में नाट्रयलेखकों और नाट्रय निर्देशकों ने अपनी सिक्रियता से हिन्दी रंगकर्म को और भास्वर किया है शास्त्रार्थ इसी कडी में एक मौलिक नाटय रचना है आचार्य शंकर और मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ बहुविदित है मंडन मिश्र की पत्नी शारदा का हस्तक्षेप और अमरूक के शरीर में शंकर का परकाया प्रवेश ये ऐसे प्रसंग है जो पाठकों को रोमांचित करते रहे हैं शास्त्रार्थ नाटक इसी कथाभूमि पर विकसित है तीन अंकों और दस दरष्यों में सुसंयोजित यह रचना रंगमंच के लिए एक नवीन आकर्षण सिध्द होगी भारतेन्दु मिश्र संस्करत साहित्य के अध्येता है इसलिए शास्त्रार्थ में गूढ चिन्तन का सहज समावेश हो गया है
पुस्तक
शास्त्रार्थ
लेखक
भारतेन्दु मिश्र
प्रकाशक
कश्यप पब्लिकेशन
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