Friday, April 23, 2010

शास्‍त्रार्थ

रंग लेखन और रंगचर्चा की दष्टि से देखें तो हिन्‍दी नाटकों में विभिन्‍न प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं ये प्रयोग सामयिक और सनातन प्रश्‍नों से मुठभेड करते हुए अपनी सार्थकता सिध्‍द करते हैं अब यह चिन्‍ता कुछ कम हो रही है कि हिन्‍दी में मौलिक नाट्रयलेखों का अभाव है वस्‍तुत पिछले दो दशकों में नाट्रयलेखकों और नाट्रय निर्देशकों ने अपनी स‍िक्रियता से हिन्‍दी रंगकर्म को और भास्‍वर किया है शास्‍त्रार्थ इसी कडी में एक मौलिक नाटय रचना है आचार्य शंकर और मंडन मिश्र का शास्‍त्रार्थ बहुविदित है मंडन मिश्र की पत्‍नी शारदा का हस्‍तक्षेप और अमरूक के शरीर में शंकर का परकाया प्रवेश ये ऐसे प्रसंग है जो पाठकों को रोमांचित करते रहे हैं शास्‍त्रार्थ नाटक इसी कथाभूमि पर विकसित है तीन अंकों और दस दरष्‍यों में सुसंयोजित यह रचना रंगमंच के लिए एक नवीन आकर्षण सिध्‍द होगी भारतेन्‍दु मिश्र संस्‍करत साहित्‍य के अध्‍येता है इसलिए शास्‍त्रार्थ में गूढ चिन्‍तन का सहज समावेश हो गया है
पुस्‍तक
शास्‍त्रार्थ
लेखक
भारतेन्‍दु मिश्र
प्रकाशक
कश्‍यप पब्लिकेशन

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