Wednesday, November 17, 2010

दूर होते रिश्‍ते लेखक राजेन्‍द्र परदेसी

ISBN : 978-93-80470-04-7

दूर होते रिश्‍ते
लेखक राजेन्‍द्र परदेसी

आधुनिक समाज में विघटनवादी प्रव़तियों का प्रापल्‍य है  परिणामतः रिश्‍तें जो समाज को जोडे रखते हैं दूर होते जा रहे है ये सभी दूरी सभी रिश्‍तों में होती जा रही है पिता-पुत्र, मां-बेटा, पति-पत्‍नी, भाई-बहन आदि रिश्‍तों में दूरियां आधुनिकता की नियति है संपन्‍न‍  परिवार स्‍वार्थों के टकराव से विखंडित होते जा रहे है यह .त्रासदी है इसे झेलते हुए भी लोग महसूस नहीं कर पा रहे है उन्‍हें रिश्‍तों की दूरी में आनंद की ही अनुभूति प्रतीत हो रही है
       कथाकार राजेन्‍द्र परदेसी ने रिश्‍तों के बीच बढती दूरी का अनुभव बडी शिद्दत से किया है उन्‍होंने सामाजिक जीवन के इस बिखराव का अपनी कहानियों को केन्‍द्र में रखकर उन्‍हें सोददेश्‍यपरकता से सवारा है जिसकी मार्मिकता से पाठक के मन में यथार्थ का बोध होगा और वह कहानियों से प्रभावित होगा.
मूल्‍य - 150 रूपये