Sunday, December 16, 2012

Sachar Ki Sifarishen by Abdur Rahman

सच्‍चर की सिफारिशें लेखक अब्‍दुर रहमान

ISBN : 978-93-82422-05-1        Price : 210.00 Rs.


मार्च 2005 में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा सच्चर समिति का गठन किया गया था. श्री राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में गठित यह प्रधानमंत्री की एक उच्च स्तरीय समिति थी. गठन के बाद समिति ने अपना कार्य आरंभ किया तथा सभी राज्यों सरकारी विभागों और अभिलेखागारों से सूचना जमा करनी शुरु की. सूचना जमा करने के क्रम में ही देश में कुछ गतिविधियाँ महसूस की जाने लगी थीं. मुस्लिमों में यह आशा बंधने लगी थी कि उनके विकास के लिए कोई विस्तृत योजना बनाई जाएगी जिससे समुदाय का विकास होगा. सभी राज्यों तथा विभागों ने समिति को सूचना नहीं दी. कुछ ने अधूरी जानकारी दी. फिर भी कड़ी मेहनत के द्वारा समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार की और नवंबर 2006 में इसे प्रधानमंत्री को प्रस्तुत की. एक वर्ष के बाद 30 नवंबर 2007 को यह रिपोर्ट लोकसभा में पेश की गई. इस प्रकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया गया.
        रिपोर्ट आम होने के बाद देश, विशेषकर मुस्लिम समाज में एक बढ़ी हुई गतिविधि (बेचैनी) दिख रही थी. सभा धरना प्रदर्शन आदि के द्वारा यह माँग होने लगी कि इस रिपोर्ट को पूरी तरह लागू किया जाए. कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया. परंतु एक बात ध्यान देने योग्य है कि किसी ने भी इस रिपोर्ट को पूरी तरह नहीं पढ़ी. संसद में पेश होने के बाद इसकी प्रतिलिपि केवल सांसदों (लोकसभा एवं राज्यसभा) को दी गई. यहाँ तक कि राज्यों के विधानसभा/ विधान परिषद् सदस्यों को भी इसकी प्रतिलिपि नहीं मिली है. पुस्तक के रुप में यह रिपोर्ट बाज़ार में भी उपलब्ध नहीं है. यह केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है जहाँ आम भारतीयों की पहुँच नहीं के बराबर है. इस प्रकार यह आम जनता की नज़र से दूर है. कुछ लोगों ने इसे सरल बनाने की कोशिश की है परंतु कम पृष्ठवाली पुस्तकों में पूरी सच्चर रिपोर्ट को प्रस्तुत करना आसान नहीं है. कहीं लिखित ;जमगजद्ध सूचना का आभाव था तो कहीं आँकड़ों तथा सारणियों को प्रस्तुत नहीं किया गया था. उस समय मैंने महसूस किया कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर एक ऐसी पुस्तक लिखी जाए जो आसान हो; जिसमें सभी प्रकार की सूचना हो जो रिपोर्ट का अनुवाद नहीं बल्कि सरल प्रस्तुतीकरण हो और आम-फ़हम भाषा में हो. इस योजना अथवा विचार के कारण यह पुस्तक पाठकों के सामने है.
        पूर्ण रुप से मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि यह पुस्तक सच्चर रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद नहीं है. यह पुस्तक सच्चर समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का हिन्दी भाषा में सरल प्रस्तुतीकरण है. एक विशेष इरादे से यह पुस्तक राष्ट्रभाषा हिन्दी में लिखी गई है ताकि आम भारतीय जनता इसे पढ़ तथा समझ सके. इसमें सच्चर रिपोर्ट की पूरी लिखित सूचना को आसान बनाकर प्रस्तुत किया गया है. सारणियों, ग्राफ चित्रों आरेखों और रिपोर्ट की परिशिष्ट में दी गई जानकारी को सरल बनाकर पेश किया गया है. पुस्तक लिखते समय यह सावधानी बरती गई है कि पुस्तक छोटी हो आम भाषा में हो और सच्चर रिपोर्ट की छोटी-सी-छोटी जानकारी भी उसमें शामिल हो. व्यावहारिक तौर पर यह सच्चर रिपोर्ट का संपूर्ण तथा आसान सार-संक्षेप है.
        यह पुस्तक 14 अध्यायों में विभाजित है. अध्याय 1 एवं 2 और सभी परिशिष्ट लेखक द्वारा जोड़ें गए हैं. सच्चर रिपोर्ट के 12 अध्यायों को इस पुस्तक में अध्याय 3 से 14 तक प्रस्तुत किया गया है. रिपोर्ट में प्रस्तुत लिखित जानकारी को इसमें शब्दशः नहीं उतारा गया है. प्रत्येक अध्याय की आवश्यक सूचना को आसान शब्दों में पेश किया गया है. कठिन सारणी को आसान बनाना; सारणी को छोटा करना दो या उससे अधिक सारणियों को जोड़ना रिपोर्ट के परिशिष्ट की सारणियों को अध्याय में प्रस्तुत करना तथा चित्रों आरेखों और ग्राफ की जानकारी को लिखित रुप में प्रस्तुत करना इस प्रकार के अभ्यास इस पुस्तक में किए गए हैं. प्रत्येक सारणी के बाद उसका विश्लेषन आसान शब्दों में किया गया है. प्रत्येक अध्याय के अंत में उसका सारांश और सच्चर द्वारा की गई सिफ़ारिशों को अत्यंत सरल भाषा में पेश किया गया है. अनेक स्थानों पर तांत्रिक हिन्दी शब्दों को आसान बनाने के लिए उनसे मेल खानेवाले अंग्रेज़ी शब्द दिए गए हैं. अ.जा./अ.ज.जा. के लिए sc/st सामाजिक-धार्मिक समूह के लिए SRCs आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है. सारणी के शीर्षक तथा सारणी के भीतर की सूचना को अंग्रेज़ी में प्रस्तुत किया गया है. सारणी के अंदर के तांत्रिक शब्दों का यदि हिन्दी अनुवाद किया जाए तो यह पाठकों के लिए कठिन हो जाएगा. केवल सारणी 12-1 तथा 14-2 को पूर्ण रुप से हिन्दी में प्रस्तुत किया गया है. प्रत्येक अध्याय में सूचना का अद्यतन करने के लिए संदर्भ-सूची में उल्लेखित पुस्तकों की सहायता ली गई है.
        पुस्तक के रचना-काल में मेरी पत्नी फ़रज़ाना बेटी अदीबा और पुत्र फ़हद ने जिस धैर्य का परिचय दिया है तथा जो सहायता एवं प्रोत्साहन मुझे दी है इसके लिए मैं इनका आभारी हूँ. सारणियों की टाइपिंग में अदीबा ने मेरी सहायता की थी. मैं उसे विशेष रुप से धन्यवाद देता हूँ. मैं अपने मित्रों का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे प्रोत्साहन दिया तथा पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया. पुणे विश्वविद्यालय के उप-कुलपति डाॅ. वासुदेव गाडे का मैं आभारी हूँ जिन्होंने पूरी पाण्डुलिपि को पढ़ा तथा पुस्तक के विषय में अपना अभिप्राय दिया है. मैं विनोद वामनराव पाटील पुलिस कांन्स्टेबल जिला-जलगाँव का अत्यंत आभारी हूँ जिसने पाण्डुलिपि की टाइपिंग उसे सुधारने और प्रिंटिंग में मेरी काफ़ी सहायता की है. पुस्तक के एडिटर दिपक पुंडेकर तथा पुस्तक लिखने में जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में मेरी सहायता की है उनका आभार प्रकट करना मैं अपना कर्तव्य समझता हँू.
        सच्चर रिपोर्ट भारतीय मुस्लिम समाज की आर्थिक सामाजिक तथा शैक्षिक स्थिति की जाँच-रिपोर्ट है. मैंने इसे सरल तथा पढ़ने योग्य बनाने का प्रयास किया है. मुझे आशा है कि आम जनता इससे लाभान्वित होगी और मुस्लिम समाज के विकास और उन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयास में अपना योगदान देगी. मैं अपने उद्देश्य में कहाँ तक सफल रहा, इसके निर्णय का भार पाठकों पर है. पुस्तक में आई त्रुटियों की जि़म्मेदारी मेरी है. मैं पाठकों की प्रतिक्रिया, चाहे वे किसी भी रुप में हों का सदैव स्वागत करुँगा.
अब्‍दुर रहमान

Friday, August 17, 2012

Chand Se Chithi Aayee Hai by Sandeep Sharma

  ISBN : 978-93-80470-19-1

चांद से चिट्रठी आई है लेखक संदीप शर्मा

मैं अपनी बात इस लघु कथा के माध्यम से कहना चाहता हूँ। सूखे पेड़ की उंची टहनी पर एक घोंसला था, परिंदे के बच्चे घोंसले से बाहर सिर निकालना सीख चुके थे। पूरा दिन शोर और सबक सीखने में ही बीत जाता था। एक दिन आँधी आई और घोंसला डोलने लगा। अब बच्चों का चेहरा सुर्ख हो गया। उनका शोर अब कर्कश हो चुका था। डर के कारण शरीर काँप रहे थे। उन बच्चों ने अपने हाथ एक-दूसरे के हाथों में देकर होंसला बढ़ाया। कुछ समय बाद आँधी थम गई। घोंसला अपनी जगह था और बच्चे भी सुरक्षित थे। वे सहमे से झाँक रहे थे लेकिन कोई शोर नहीं था। उनकी डरी हुई आँखें कभी धीमी गति से डोलते घोंसले के छिन्न-भिन्न हो चुके तिनकों को देखतीं तो कभी उस डाल को जिस पर घोंसला लटका हुआ था। बड़े परिंदे ने चोंच से उस घोंसले की तुरपाई शुरू कर दी। परिंदे के बच्चांे का ये अंतिम सबक था जिसके पूरा होते ही वे घोंसला छोड़कर उड़ गए। जिंदगी भी कुछ इसी तरह की ही है। घोंसला तेज आँधी में भी बँधा रहा क्योंकि वह जिस डाल पर बनाया गया था वह लचीली थी और समय के साथ मुड़ना जानती थी। जितनी जिंदगी उतने ही थोड़े से सबक। अब घोंसले से उड़े परिंदे कई पेड़ों पर जा बसे, अपने-अपने घोंसले बनाए और दुनिया भी बसाई। कहानी छोटी है लेकिन जीवन का सार समेटे है। मेरे लिए कहानी शब्दों की जटिलता नहीं बल्कि मानवीयता की कोमल कसक है। घोंसले के सबसे मजबूत तिनके-सा भरोसा मैं अपने अंदर समेटे हुए हूँ, मेरे लिए हर वो घटनाक्रम कहानी है जो चरमराते दौर में समझदारी और संस्कार के बीज पनपाने की क्षमता रखता हो। मैं नहीं चाहता मेरी कहानियाँ कठिन शब्दों के पिंजरे में कैद होकर रह जाएँ, मैं चाहता हूँ कि वह श्वेत कपोत की भाँति आसमान में स्वछंद उड़ान भरती रहें। मेरी कहानियाँ मानवीय भावनाओं की अनुभूति में नहाई हुई हैं, उन्हें पढ़कर यदि आँखें आँसुओं से डबडबा उठें तो उन्हें पोंछियेगा मत क्योंकि तब मेरी कहानी आपको महसूस कर रही होगी। महसूसने का ये कालखंड साहित्य के आध्यात्म-सी शांति लिए हुए होगा। अनुग्रह है, मेरी पहली कृति आपको अपने से कुछ भावुक पल देने में सक्षम साबित हो तो मुझसे अवश्य कहियेगा। खामी हो तो उससे भी अवगत कराना न भूलें। आप मेरे अपने हैं। आपका ये सहयोग मुझे नया हौसला देगा। 

मूल्‍य - 180 /-

Monday, March 19, 2012

ISBN : 978-93-80470-12-2 संतों काहे की बेचैनी लेखक अनवर सुहैल


संतों काहे की बेचैनी लेखक अनवर सुहैल
ISBN : 978-93-80470-12-2

अनवर जी की इन कविताओं को पढ़ना कोयला खादानों से जुड़े अंचलों और उसके जन-जीवन से दो-चार होना है। कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों का जीवन, समाज, प्रकृति, मानवीय संवेदनाएं और उनके संघर्ष उनकी कविताओं में बहुत गहराई और व्यापकता से व्यक्त हुए हैं। ये कविताएं पाठक को एक नए अनुभव लोक में ले जाती और गहरे तक संवेदित करती हैं। मानसिक रूप से हम अपने-आपको उन अंचलों और वहाँ के निवासियों से जुड़ा महसूस करते हैं। फिर यह जुड़ना किसी स्थान विशेष या लोगों तक सीमित नहीं रह जाता है बल्कि समाज की तलछट में रह रहे श्रमरत मनुष्यों और उनकी पीड़ाओं से जुड़ना हो जाता है। इन कविताओं की स्थानीयता में वैश्विकता की अपील निहित है। खदानों के जीवन परिस्थितियों को लेकर इस तरह की बहुत कम कविताएं हिंदी में पढ़ने को मिलती हैं। छोटी-छोटी और सामान्य सी प्रतीत होने वाली घटनाओं में बड़े आशयों का संधान करना इन कविताओं की विशेषता है। ये कविताएं पाठक से सीधा संवाद करती हैं, इस तरह कविता में अमूर्तीकरण का प्रतिकार करती हैं। कहीं-कहीं वे अपनी बात को कहने के लिए अधिक सपाट होने के खतरे भी उठाते हैं। नाटकीयता उनकी कविताओं की ताकत है।
अनवर सुहैल कविता में संप्रेषणीयता के आग्रही रहे हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह कविता के नाम पर सपाट और शुष्क गद्य के समर्थक हों। उनका मानना है कि गद्य लेखकों की बिरादरी आज की कविता को ‘कवियों के बीच का कूट-संदेश’ सिद्ध करने पर तुली हुई है। यानी ये ऐसी कविताएं हैं जिन्हें कवि ही लिखते हैं और कवि ही उनके पाठक होते हैं। कवि और आलोचकों का एक अन्य तबका ऐसा है जो कविता को गूढ़, अबूझ, अपाठ्य, असहज और अगेय बनाने की वकालत करता है। वह प्रश्न खड़ा करते हैं कि किसी साधारण सी बात को कहने के लिए शब्दों की इस बाजीगरी को ही कविता क्यों कहा जाए? इसलिए अपनी कविताओं में वह इस सबसे बचते हैं।
लोकोन्मुखता उनकी कविता मूल स्वर है। लोकधर्मी कविता की उपेक्षा उनको हमेशा सालती रही है। इसी के चलते उन्होंने ‘संकेत ‘पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्रिका के माध्यम से उनका प्रयास है साहित्य केन्द्रो से बाहर लिखी जा रही महत्वपूर्ण कविता को सामने लाया जाय जिसकी लगातार घोर उपेक्षा हुई है। कठिन और व्यस्तता भरी कार्य परिस्थितियों के बावजूद अनवर लिख भी रहे हैं, पढ़ भी रहे हैं और साथ ही संपादन जैसा थका देने वाला कार्य भी कर रहे हैं। यह सब कुछ वही व्यक्ति कर सकता है जिसके भीतर समाज के प्रति गहरे सरोकार समाए हुए हों। बहुत कम लोग हैं जो इतनी गंभीरता से लगे रहते हैं और दूरस्थ जनपदीय क्षेत्रों में रचनारत लोगों के साथ अपने जीवंत संबंध बनाए रखते हैं।
पेशे से माइनिंग इंजीनियर अनवर सुहैल केवल कविता में ही नहीं बल्कि कथा के क्षेत्र में भी समान रूप से सक्रिय रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व राजकमल प्रकाशन से उनका ‘पहचान’ नाम से एक उपन्यास आया है। जो काफी चर्चित रहा है। इस उपन्यास के केंद्र में भी समाज के तलछट में रहने वाले लोगों का जीवन है जो जीवन भर अपनी पहचान पाने के लिए छटपटाते रहते हैं। विशेषकर उन लोगों का जो धार्मिक अल्पसंख्यक होने के चलते अपनी पहचान को छुपाते भी हैं और छुपा भी नहीं पाते हैं। यह कसमकस इस उपन्यास में सिद्दत से व्यक्त हुई है।
बकौल महेश
मूल्‍य -125 रूपये

Sunday, March 18, 2012

कविता का आंचल लेखक गुरिंदर सिंह कलसी


ISBN : 978-93-80470-09-2


गुरिन्दर सिंह कलसी का यह संग्रह अपने आसपास के परिवेश से आलोकित अनुभवों को कविता में अखेरता है।

         इसमें प्रणय की छवियाँ और निर्मल क्षणों के अलावा प्रकृति के दीप्त चित्र भी अंकित हैं। मानवीय संबंधों की उष्मा के लिए भी इस संग्रह की कविताएँ ‘अचानक’, ‘अच्छा लगना’, ‘इंतज़ार’, ‘उम्मीद’ और ‘जन्म’ विशेष उल्लेखनीय हैं।
         कलसी एक संभावनाशील कवि हैं और भाषा को बरतने के हुनर में हैं। उनकी कविता का फांर्म सुगढ़ता से अपना आकार गृहण कर रहा है। शब्दों के प्रति उनमें राग है और मितव्ययी स्वभाव के कारण वे न अतिरिक्त बोलते हैं न शब्दों की फिजूलख़र्ची करते हैं।
        कलसी की कविताओं को पढ़ना इस अर्थ में सुखद है कि वहाँ हमारी सुपरिचित जि़दगी के भुलाए जा चुके पते, ठिकाने, प्रसंग और संदर्भ है। मैं उनकी बेहतर कविताओं की प्रतीक्षा में रहूंगा।
लीलाधर मंडलोई

मूल्‍य 125/- रूपये

ISBN : 978-93-80470-11-5 चंदावती (अवधी उपन्‍यास) लेखक भारतेन्‍दु मिश्र

चंदावती लेखक भारतेन्‍दु मिश्र
(अवधी समाज का नया आख्यान)
ISBN : 978-93-80470-11-5


चन्दावती उपन्यास म समाज क बदलै कै कोसिस स्त्री समाज की ओर से कीन्ह गै बा। स्त्री क सब कुछ क्षमा करै वाला औ सबके भले क खातिर अपुना काँ निछावर करै वाला रूप यहमन देखाय परथै। ई क्षमा हिंसा क खिलाफ जब तनि के खड़ी होय जाथै तौ हिंसा क हारै क परथै। नई रोसनी जौन पढी लिखी लड़कियन म आइ बा वहसे नयी पीढ़ी आपन भूमिका अच्छी तरह से निभाय सकथै औ समाज कै कुरीतियन काँ बदलै म सबका यह बदलाव की खातिर तैयार करै म सफल होय सकथै।

        यहि उपन्यास म लोकतंत्रा कै चैथा खम्भा पत्राकारिता कै महत्त्व औ ताकत उजागिर कीन गै बा। जौ पत्राकार इमानदारी के साथ आम आदमी के सुख-दुख म जुटि जायँ तौ वनकी कलम कै ताकत बहुतै कुछ बदल सकथै, ठीक कइ सकथै। मुला पत्राकारन कै समझौता परस्त सुविधालोभी रूपौ यहि म देखाय परा बा।
आदमी क कमजोरी औ अच्छाई दुनौ उपन्यास म बहुतै सहज ढंग से देखाय गै बा। राजनेतन काँ लोक लाज के भै के मारे कुछ समाज के हित म करै वाला भाव यहि उपन्यास म देखावा गै बा। आज कै नेता लोक लाजौ क तिलांजलि देत चला जाथइन, वन्है ई उपन्यास कुछ सबक दै सकथै।
     कुल मिलाय कै ई उपन्यास एक सफल उपन्यास बनिगै बा। हमार ई सुभकामना बा कि चन्दावती क कहानी गाँव गाँव म पहुँचै औ अन्याय के खिलाफ सबका जगावै, सबके मन म स्त्री क अधिकार खातिर चेतावै। ई कहानी कस्बा, सहरौ म पहुँचै औ अपने पद औ हैसियत म मगरूर नेतन औ अफसरन का ई सोचै पै मजबूर कइ देय कि वै केतना सही हइन औ केतना गलत। वन्है ई याद देवावै कि तोहरे हाथे म ताकत या कलम यहि बरे दीनि गै बा कि तूँ जनता क सेवा करा।
     भाई भारतेन्दु मिश्र कै ई अवधी उपन्यास एक बड़े अभाव कै पूर्ति करै वाला है। वै ई उपन्यास लिखि कै एक लीक बनाइन है जौने से अवधी म लिखै वाले अवधीभासी प्रेरणा पाय सकथिन। बहुतै-बहुतै बधाई। भगवान श्रीराम से इहै प्रार्थना बाटै कि भारतेन्दु जी कै कलम दिनौ दिन ताकत पावत जाय, बढ़त जाय औ सबके बीचै म सराही जाय।

डां विद्याविन्दु सिंह
मूल्‍य 250/- रूपये