ISBN : 978-93-80470-05-4
अभी उम्मीद बाकी है लेखक संदीप अवस्थी
अधिकांश कहानियां घटना प्रधान या भावना और विचार प्रधान होती हैं। घटना प्रधान कहानी दीर्घजीवी नहीं होती लेकिन उसे पढ़कर आत्मसात करने वाले पाठकों की संख्या अधिक होती है। भावना और विचार का समावेश कहानी की उम्र लम्बी करने के साथ पढ़ने वालों की विकास यात्रा में सहायक बनता है। पात्रों और परिस्थितियों, वेश और परिवेश, दिल और दिमाग के साथ रखते हुए संतुलित बलाघात के माध्यम से किया गया कहानी लेखन बहुधा कालजीवी सिद्ध होता है। लेखक की अपनी तैयारी कहानी की दिशा तय करने के संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक तत्व है। पाठक ने रचना को समय गुजारने के लिये पढ़ा है या पढ़ा हुआ उसमें आये परिवर्तन का कारण बना है, लेखन की सार्थकता की यह सबसे बड़ी कसौटी है।
अभी उम्मीद बाकी है लेखक संदीप अवस्थी
अधिकांश कहानियां घटना प्रधान या भावना और विचार प्रधान होती हैं। घटना प्रधान कहानी दीर्घजीवी नहीं होती लेकिन उसे पढ़कर आत्मसात करने वाले पाठकों की संख्या अधिक होती है। भावना और विचार का समावेश कहानी की उम्र लम्बी करने के साथ पढ़ने वालों की विकास यात्रा में सहायक बनता है। पात्रों और परिस्थितियों, वेश और परिवेश, दिल और दिमाग के साथ रखते हुए संतुलित बलाघात के माध्यम से किया गया कहानी लेखन बहुधा कालजीवी सिद्ध होता है। लेखक की अपनी तैयारी कहानी की दिशा तय करने के संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक तत्व है। पाठक ने रचना को समय गुजारने के लिये पढ़ा है या पढ़ा हुआ उसमें आये परिवर्तन का कारण बना है, लेखन की सार्थकता की यह सबसे बड़ी कसौटी है।
डा. संदीप अवस्थी के कहानी संग्रह ‘अभी उम्मीद बाकी है’ में शामिल सभी सोलह कहानियाँ वैचारिक परिपक्वता का प्रतिफल हैं। घटना प्रधान होते हुए भी भावना व विचार को साथ रखकर कहानी का गठन किया गया है। दिल का पलड़ा भारी रहने के बावजूद संग्रह की प्रत्येक कहानी एक तेवर को साथ लेकर चलती है। पठन, अध्यवसाय व चिन्तन के साथ चर्चाओं के माध्यम से मंथन करते हुए डा. संदीप ने जो मुकाम हासिल किया है, उसी का नतीजा है कि उनकी कहानियाँ पाठक में निरंतर कुछ न कुछ जोड़ती है। मनोरंजन के लिये पढ़ी गई कहानियाँ भी शनैः-शनैः पैठ बनाती हुई पाठक के चिन्तन को, उसके सोच व संस्कार को उद्वेलन की राह से कदम-दर-कदम आगे बढ़ाते हुए परिवर्तनकामी की भूमिका में लाकर खड़ा कर देती हैं।
‘सरहद के पार’ में सीमावर्ती क्षेत्रों में तस्करी व्यापार की, ‘वायवा’ में पी-एच.डी. के दौरान सम्पूर्ण प्रक्रिया की, ‘इमोशनल अत्याचार’ में सम्बन्धों की ईमानदारी परखने के लिये स्टिंग आपरेशन की, ‘मुझसे बुरा न कोय’ में साहित्य जगत की अन्तर्कथा को उजागर करते हुए डाॅ. संदीप अपनी कहानियों से पाठक के लिए वे द्वार और खिड़कियाँ खोलते हैं, जिन तक पहुंचने की चेष्टा कम लेखकों ने की है। जानकारी के नये सूत्रों के साथ वे सड़ांध मारते व्यवस्था के हिस्सों का मुकाबला करने के लिये भी सचेत करते हैं।
‘अभी उम्मीद बाकी है’ और ‘मेरे सीने में आग जलती है’ आतंकवाद की समस्या को भिन्न नजरिये से देखने की चेष्टा करती है। ‘गंगा स्नान’, ‘दिल तो बच्चा है जी’ और ‘संगुफन’ अलग-अलग कथ्यों को लेकर लिखी गई हैं। ये कहानियां समस्या को मनोवैज्ञानिक परिणति प्रदान करती हैं और इस अर्थ में मानव मन केा समझकर उसे सकारात्मक दिशा देने की सार्थक कोशिश हैं। दलित चेतना बनाम दलितों के लिये बने कानूनों के अनुचित प्रयोग पर आधारित कहानी ‘अथातो दलित चेतना’ सत्य के उस पक्ष को उद्घाटित करती है जिसे सामने लाने का साहस सामान्यतः कोई नहीं करता। शारीरिक उबालों में डूबी, आंखें बन्द करके भी वातावरण में रची-बसी होने का अहसास कराती स्थितियों का प्रेम के आवरण में प्रदूषण भरी हवा के सांस लेने को उहापोह चित्रित करती कहानी ”उत्तर आधुनिकतावादी प्रेम“ सांस्कृतिक टकराव का दस्तावेज है।
संग्रह की कहानियां व्यक्तिगत जीवन में व्याप्त दुख-सुख, राग-रंग, उतार-चढ़ाव और आकर्षण-विकर्षण की पृष्ठभूमि के बावजूद सीधी सामाजिक सरोकारों की प्रस्तुति हैं। केवल समस्या बयान करके, चारों ओर दिखाई देती विपरीतताओं की ओर संकेत करके, विवशता भाव प्रदर्शित करके कहानियां चुप नहीं हो जाती हैं। जूझने, संघर्ष करने और समस्या पर काबिज होने का जज्बा संग्रह की कहानियों में शब्द-दर-शब्द परिलक्षित होता है। डा संदीप की एक भी कहानी पलायन का पैगाम लेकर नहीं आती। उनकी कहानियां लड़ते-लड़ते दूर तक जाने की प्रेरणा देती हैं। घोषित करती है कि तब तक हथियार मत डालो कि जब तक समस्या पिघलकर पानी न बन जाये।
डा संदीप को साहित्य की कई मंजिलें अभी तय करनी हैं। मुझे विश्वास है कि विचार व भावपदों उनकी कहानियों में समय को साक्षी बनाता रहेगा संतुलन की जो क्षमता उनकी कहानियों में प्रखर रूप से विद्यमान है, कालान्तर में अधिक पुष्ट होकर सामने आयेगी।
मूल्य : 200/-
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