Wednesday, November 17, 2010

दूर होते रिश्‍ते लेखक राजेन्‍द्र परदेसी

ISBN : 978-93-80470-04-7

दूर होते रिश्‍ते
लेखक राजेन्‍द्र परदेसी

आधुनिक समाज में विघटनवादी प्रव़तियों का प्रापल्‍य है  परिणामतः रिश्‍तें जो समाज को जोडे रखते हैं दूर होते जा रहे है ये सभी दूरी सभी रिश्‍तों में होती जा रही है पिता-पुत्र, मां-बेटा, पति-पत्‍नी, भाई-बहन आदि रिश्‍तों में दूरियां आधुनिकता की नियति है संपन्‍न‍  परिवार स्‍वार्थों के टकराव से विखंडित होते जा रहे है यह .त्रासदी है इसे झेलते हुए भी लोग महसूस नहीं कर पा रहे है उन्‍हें रिश्‍तों की दूरी में आनंद की ही अनुभूति प्रतीत हो रही है
       कथाकार राजेन्‍द्र परदेसी ने रिश्‍तों के बीच बढती दूरी का अनुभव बडी शिद्दत से किया है उन्‍होंने सामाजिक जीवन के इस बिखराव का अपनी कहानियों को केन्‍द्र में रखकर उन्‍हें सोददेश्‍यपरकता से सवारा है जिसकी मार्मिकता से पाठक के मन में यथार्थ का बोध होगा और वह कहानियों से प्रभावित होगा.
मूल्‍य - 150 रूपये

Sunday, September 26, 2010

कविता का समय संपादक लीलाधर मंडलोई

ISBN : 978-93-80470-03-0

कविता का समय
संपादक - लीलाधर मंडलोई

कविता की इस छोटी सी दुनिया में प्रवेश के रास्‍ते हैं लेकिन कुछ उलझे हुए हैं गांव-खेडे का कवि अक्‍सर भटक जाता है प्रकाशक ने इस प्रकाशन दायित्व से इस दुनिया को थोडा चौडा किया है और अब एक स्पेस है इस पर आते कवि हैं उनकी अपनी एक जगह होगी जहां से वे दुनिया को समझ सकेंगे उनके संघर्ष बडे होगे मुमकिन है कठिन रास्तों से बडी कविता के लिए कोई रास्ता खुले हमने तो उसके लिए एक जगह बनाई है अब यह जगह है और कवि है और रास्ता है और सबसे अच्छी लिखी जाने वाली कविता की उम्मीद....
पुस्तक का मूल्य : 200 रूपये
प्रकाशक : कश्यप पब्लिकेशन

Thursday, June 10, 2010

DEVELOPMENT OF PRIMITIVE TRIBES IN INDIA by Dr. CHANDRAKANT PURI

DEVELOPMENT OF PRIMITIVE TRIBES IN INDIA by Dr. CHANDRAKANT PURI ISBN : 978-81-905501-92
As per the 2001 Census there were 85.77 lakh tribals in Maharashtra, which is 8.85% of the total population of Maharashtra. Bhill, Gond, Gavit, Kolam, Kokru, Warli, Kokna, Andh, Malhar, koli, Thakur and Katkaris are the predominant tribes in Maharashtra which constitute 80% of the total tribal population.17 Maharashtra is one of the four states, which has the largest number of tribal population. According to the 2001 Census, the literacy in Maharashtra was 76.90% whereas the literacy among the tribals was just 45.05%. All the tribal communities in Maharashtra are economically impoverished. The main source of their livelihood is agriculture. Forty percent of the tribals cultivate land, whereas 45% of them work as agricultural laborers. Besides agriculture, another major source of their livelihood is forest products. Tribals in Maharashtra can be geographically divided into 3 areas namely, Sahyadri region, Satpuda region and Gondvan region. As per 2001 census tribal population of the Raigad district is 12.2%, which falls under the sahyadri region.

Rs. 250/-

Publisher : Kashyap Publication Adress : B-48/UG-4, Dilshad Exten-II, DLF, Ghaziabad-201005 ph: 9868778438

Wednesday, June 9, 2010

Garun Puran Rahashya

ISBN: 978-93-80470-01-6
गरुड़ पुराण रहस्य
लेखक
परम दयाल फकीर चंद जी महाराज
फकीर के धार्मिक विचारों के कई स्रोत थे जैसे हिंदू धर्म (सनातन धर्म) और राधास्वामी मत से उनकी लंबी सहबद्धता और सब से बढ़ कर सुरत शब्द योग में उनका निजी अनुभव. फकीर को राधास्वामी मत के मानवतावादी नजरिए में सहमति योग्य बहुत कुछ मिला लेकिन वे उनके नामदान के परंपरागत तरीके और भारत में प्रचलित गुरुइज़्म से असहमत थे. ऐसी धार्मिक प्रथाओं के प्रति उनकी सहनशीलता शून्य थी जिनसे गरीब, विश्वासी और भोले-भाले लोगों का शोषण होता हो. वे कबीर द्वारा चलाए गए संतमत के बुनियादी सिद्धांतों के प्रबल हिमायती थे परंतु सुरत शब्द योग की उच्चतम अवस्थाओं के अंतिम परिणाम और संतों द्वारा पोषित रहस्यवाद से उनका मोहभंग हो चुका था. बाद में उन्होंने योग-साधना को दिए जा रहे महत्व को कम किया और संतमत के मानवतावाद पर बल दिया. फकीर की इस विचार में आस्था थी कि 'सेक्स केवल संतान उत्पत्ति के लिए हो' (यहाँ वांछित संतान अभिप्रेत है). बिना संतान की इच्छा के पैदा हुई संतान को वे ख़ुद रौ संतान कहा करते थे जो देश के लिए हानिकारक है. संतान को संतान प्राप्ति के भाव से उत्पन्न करने पर वे बल देते थे. इससे मानव जाति के कष्ट कम हो सकते हैं. उनके जीवन-दर्शन के अनुसार दूसरों के और अपने कल्याण की इच्छा करना जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण हिस्सा है. युवाओं को आंतरिक शांति के लिए उन्होंने शारीरिक और मानसिक ब्रह्मचर्य का पालन करने, सदा व्यस्त रहने, अपनी आजीविका स्वयं कमाने, किसी सच्चे इंसान के मार्गदर्शन में रहने और आत्म-संयमी बनने की सलाह दी. अपने सामाजिक कर्तव्य के तौर पर उन्होंने अनुयायियों से कहा कि वे दूसरों को नीयतन कष्ट न पहुँचाएँ, बेमतलब बात करने से बचें, कड़वे शब्दों के प्रति सहनशील बनें और साथी प्राणियों की नि:स्वार्थ सेवा करें फकीर ने 'हर कीमत पर घरेलू शांति' पर विशेष बल दिया. शुभ कर्म, शुद्ध कमाई, दान (जिसमें प्रेम और कल्याण भी शामिल है) आदि जीवन के ऐसे पक्ष थे जो आध्यात्मिक और सामाजिक दायित्व में शामिल थे. ये मानव मात्र के लिए आवश्यक हैं. आध्यात्मिक साधनाओं के अंतर्गत उन्होंने प्रेम, भक्ति, विश्वास, समर्पण पर ज़ोर दिया. 'स्वयं के प्रति सच्चा बनने', ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करने, सुमिरन-ध्यान करने और इस प्रकार अंत में आत्मज्ञान प्राप्त करने का तरीका उन्होंने बताया. फकीर चंद जी महाराज ने इस बात पर हमेशा बल दिया कि स्त्रियों का गुरु स्त्री को ही होना चाहिए. यह महिलाओं के सामाजिक सम्मान के लिए ज़रूरी है. फकीर ने अनुभव किया कि इन्सान चेतन तत्त्व का बुलबुला है और कि संतों का और मानव का अंतिम लक्ष्य (मंज़िले मकसूद) शांति है.

Tuesday, May 11, 2010

Galti Sudhar Gayee by Jagmohan Azad

Galti Sudhar Gayee by Jagmohan Azad ISBN:978-93-80470-02-3 Review Text : आज़ाद की इन बाल कहानियों में गढ़वाल और कुमाऊं की पथरीली जमीन का अहसास है, वहां के स्कूलों की खामियां-खूबियां भी तो बच्चों के दर्द की अपनी अभिव्यक्ति भी है। इन कहानियों में कई कहानियां मुक्तिकामी चेतना को आवाज़ देने वाली तो है साथ सहज सरल भाषा में बच्चों की सहज सरल कहानियां भी हैं। जिनकी आज के बच्चों को जरूरत है। आज के बच्चे कम्प्यूटर गेम और 'ई' तकनीकी के जिस तरह से दिवाने हो रहे है। ऐसे में गांव-खेत-खलिहाना और दादा-दादी के समय से बच्चों के लिए संस्कार-आदर्श निकालकर इनके सामने रखना जितना चुनौती पूर्ण हैं,यह आज किसी से छुपा नहीं हैं। लेकिन जगमोहन ने अपने पहले बाल काहनी संग्रह 'गलती सुधर गयी' के माध्यम से जिस तरह से इस चुनौती को स्वीकार किया हैं। इसकी निश्चित तौर पर प्रसन्नसा की जानी चाहिए। क्योंकि इन संस्कारों और आदर्शों की आज के बच्चों को बहुत जरूरत हैं।
मूल्य : 80 रूपये
प्रकाशक : कश्यप पब्लिकेशन
बी-48/यू. जी.-4, दिलशाद एक्‍सटेंशन-2 डीएलएफ, गाजियाबाद-05
फोन: 9868778438

Friday, May 7, 2010

santmat by bhagat munshiram

Title: Santmat by bhagat munshiram ISBN: 8190550144 Review Text: "बचपन से ही संत और संतमत जैसे शब्‍द अपनी अलग-अलग छवियों के साथ मन पर बैठतेरहे हैं. संतमत की एक छवि रहस्‍य जैसी भी है जिसे जाना नहीं जा सकता. एक अलौकिकप्रभामंडल जैसी भी है जो लुभाता तो है परन्‍तु उस तक पहुँचना कठिन है. कोईबेपरवाह तेजस्‍वी है जो हर हाल में मस्‍त है. कहीं साधुओं या सत्‍संगियों कीभीड़ पर हवा-सा पसरा बैठा है. कहीं सुधारक, कहीं उद्धारक, कहीं कष्‍ट निवारक, कहींमनोकामना पूरी करने वाला. कहीं किसी धर्मगुरु की मूर्ति, कहीं किसी महात्‍मा काफोटो. इन छवियों का कोई अन्‍त नहीं और सब के सब लडाइयों के धन्‍धे......" प्रकाशक कश्यप पब्लिकेशन बी-48/ यूजी-4, दिलशाद एक्‍टेंशन-II डीएलएफ, गाजियाबाद फोन 09868778438

Friday, April 23, 2010

शास्‍त्रार्थ

रंग लेखन और रंगचर्चा की दष्टि से देखें तो हिन्‍दी नाटकों में विभिन्‍न प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं ये प्रयोग सामयिक और सनातन प्रश्‍नों से मुठभेड करते हुए अपनी सार्थकता सिध्‍द करते हैं अब यह चिन्‍ता कुछ कम हो रही है कि हिन्‍दी में मौलिक नाट्रयलेखों का अभाव है वस्‍तुत पिछले दो दशकों में नाट्रयलेखकों और नाट्रय निर्देशकों ने अपनी स‍िक्रियता से हिन्‍दी रंगकर्म को और भास्‍वर किया है शास्‍त्रार्थ इसी कडी में एक मौलिक नाटय रचना है आचार्य शंकर और मंडन मिश्र का शास्‍त्रार्थ बहुविदित है मंडन मिश्र की पत्‍नी शारदा का हस्‍तक्षेप और अमरूक के शरीर में शंकर का परकाया प्रवेश ये ऐसे प्रसंग है जो पाठकों को रोमांचित करते रहे हैं शास्‍त्रार्थ नाटक इसी कथाभूमि पर विकसित है तीन अंकों और दस दरष्‍यों में सुसंयोजित यह रचना रंगमंच के लिए एक नवीन आकर्षण सिध्‍द होगी भारतेन्‍दु मिश्र संस्‍करत साहित्‍य के अध्‍येता है इसलिए शास्‍त्रार्थ में गूढ चिन्‍तन का सहज समावेश हो गया है
पुस्‍तक
शास्‍त्रार्थ
लेखक
भारतेन्‍दु मिश्र
प्रकाशक
कश्‍यप पब्लिकेशन

Nai Roshni: Author: Bhartendu Mishra, ISBN: 8190550187 - A1Books India

Nai Roshni: Author: Bhartendu Mishra, ISBN: 8190550187 - A1Books India

nai roshni

Nai Roshni by Bhartendu Mishra
ISBN - 8190550187
नई रोसनी का कथा फ़लक व्‍यापक है गांव से लेकर देश की राजधानी तक फैला हुआ। कथा का आरम्‍भ होता है बडे भाई रमेसुर के माध्‍यम से जो दिल्‍ली के बार्डर पर स्थिति कलंदर कालोनी में रहते हुए स्‍वयं के चार रिक्‍शों को किराये पर उठाने का धन्‍धा करते हैं और बंटी चौराहे पर स्थिति पांडे पान वाले की पुटपथियां दुकान पर से गांव में रह रहे अपने छोटे भाई का हालचाल लेने के लिए गांव के ठाकुर के घर पर फोन करते हैं कि ठाकुर साहब ३०० रपये माहवार पर उन्‍हीं की सेवा में चौबीसों घंटे की चाकरी करने वाले निरहू को बुला देंा और फिर शुरू होता है उधड रहे स्‍वेटर के फन्‍दों की भांति महमूदाबाद के रामपुर के निकट स्थित गांव धांधी के अन्‍तर्ससार के तलछट का कुरूप सत्‍य ......... पुस्‍तक नई रोसनी लेखक भारतेन्‍दु मिश्र रूपये 60 रूपये प्रकाशक कश्यप पब्लिकेशन बी-48/ यूजी-4, दिलशाद एक्‍टेंशन-II डीएलएफ, गाजियाबाद फोन 09868778438